Wednesday, August 21, 2019

बिहार: कौन कर रहा है सरकारी स्कूलों को बदहाल?

क्या आपका बच्चा बिहार सरकार के स्कूल में पढ़ता है? क्या आपको पता है कि प्राइवेट स्कूलों की तरह यहां के सरकारी स्कूलों में होमवर्क दिए जाने की कोई परंपरा नहीं है?
क्या आप जानते हैं कि बिहार के ज़्यादातर सरकारी स्कूलों में बिजली का कनेक्शन नहीं है, पंखे नहीं हैं? बच्चे अब भी ज़मीन पर बैठकर पढ़ाई करते हैं?
बिहार में 52 बच्चों के लिए एक शिक्षक है जबकि तय मानक के अनुसार 40 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए. मगर बिहार में कहीं 990 छात्रों को पढ़ाने के लिए तीन शिक्षक तो कहीं 10 छात्रों के लिए 13 हैं.
बिहार सरकार के सभी स्कूल नेतरहाट विद्यालय के मॉडल पर बने सिमुलतला जैसे क्यों नहीं हैं जिसे अच्छी पढ़ाई के कारण टॉपर गढ़ने की मशीन कहा जाना लगे है?
अगर इन सवालों के जवाब 'हां' में हैं तो मुमकिन है कि कुछ सवाल आपको यक़ीनन परेशान करते होंगे. जैसे स्कूल ड्रेस, मिडडे मील और छात्रवृति के बीच स्कूल की पढ़ाई कहां गुम होकर रह गई है?
'समान काम के बदले समान वेतन' की मांग कर रहे राज्य के क़रीब 3.56 लाख शिक्षक आंदोलन पर हैं.
अपनी मांगों के समर्थन में चरणबद्ध तरीके से राज्यव्यापी प्रदर्शन कर रहे हैं. आगामी पांच सितंबर यानी शिक्षक दिवस को पटना के गांधी मैदान में वे काली पट्टी बांधकर 'वेदना प्रदर्शन' करेंगे.
इन्हीं नियोजित शिक्षकों में से 74 हज़ार से ज़्यादा की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज़ ग़ायब हैं और उन पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है.
नियोजन में हुए फर्ज़ीवाड़े की जांच कर रही निगरानी आयोग की टीम ने पिछले दिनों शिक्षा विभाग के साथ हुई मामले की समीक्षा जांच बैठक में स्पष्ट कह दिया है कि अगर अगली बार भी दस्तावेज़ नहीं उपलब्ध कराए गए तो विभाग और नियोजन इकाई के अधिकारियों समेत तमाम शिक्षकों पर केस दर्ज किया जाएगा.
बिहार सरकार ने एक बार फिर से क़रीब एक लाख शिक्षकों के नियोजन का नोटिफ़िकेशन निकाल दिया है.
जिसके मुताबिक़ साल के अंत तक नियोजिन की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. उपरोक्त तीनों बातें व्यवस्था की बातें हैं. सवाल है कि स्कूलों में क्या चल रहा है?
पिछले महीने बिहार शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा बांका के मध्य विद्यालय, पिपरा का औचक निरीक्षण किया गया.
निरीक्षण के दौरान सभी शिक्षक-शिक्षिकाएं उपस्थित पाए गए लेकिन दो अध्यापक कथित तौर पर अपने-अपने वर्ग कक्ष के बाहर कुर्सी पर बैठकर मोबाइल इस्तेमाल करते पाए गए, जबकि कक्ष में उपस्थित छात्र-छात्राएं उनके पढ़ाने का इंतजार कर रहे थे.
दोनों शिक्षकों के खिलाफ़ विभाग ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा की है. इससे सम्बन्धित प्रतिवेदन की कॉपी सोशल मीडिया पर भी वायरल है.
इस तरह इन सभी बातों को मिलाकर बिहार की शिक्षा व्यवस्था का फिर से मज़ाक उड़ाया जा रहा है. सरकारी स्कूलों के मैनेजमेंट पर तो सवाल खड़े हो ही रहे हैं लेकिन सबसे अधिक सवालों के घेरे में शिक्षकों की भूमिका है.
एक ओर सभी नियोजित शिक्षक समान काम के बदले समान वेतन की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जांच में हजारों शिक्षकों का नियोजन फर्जी लग रहा है. शिक्षा विभाग द्वारा कराई जा रही विद्यालयों की बड़े स्तर पर औचक जांच में रोज़ाना शिक्षकों की गड़बड़ियां सामने आ रही हैं.
विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ तीन अगस्त को पटना जिले के 11 स्कूलों में औचक जांच कराई गई. जांच में 62 फ़ीसदी बच्चे अनुपस्थित मिले. इन स्कूलों में 51 शिक्षकों की पदस्थापना थी मगर मौजूद 40 शिक्षक ही थे. इनमें से भी छह शिक्षकों का कार्य संतोषजनक नहीं था.